जुबा तो डरती है कहने से | |||
पर दिल जालीम कहता है | |||
उसके दिल में मेरी जगह पर | |||
और ही कोई रहता है ॥ धृ ॥ | |||
बात तो करता है वोह अब भी | |||
बात कहाँ पर बनती है | |||
आदत से मैं सुनती हूँ | |||
वोह आदत से जो कहता है ॥ १ ॥ | |||
दिलमें उसके अनजाने | |||
क्या कुछ चलता रहता है | |||
बात बधाई की होती है | |||
और वोह आखें भरता है ॥ २ ॥ | |||
रात को वोह छुपकेसे उठकर | |||
छतपर तारे गिनता है | |||
देख के मेरी इक टुटासा | |||
सपना सोया रहता है ॥ ३ ॥ | |||
दिलका क्या है, | |||
भर जाये या उठ जाये, | |||
एक ही बात... | |||
जाने या अनजाने | |||
शिशा टूटता है तो टूटता है ॥ ४ ॥ | |||
* संदीप खरे * |
Friday, March 26, 2010
संदिप खरे.........गझल
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